Monday, December 31, 2012

हम क्यों आजतक इतने सहनशील बने रहे..??

हम क्यों आजतक इतने सहनशील बने रहे ...?
क्यों अपने ही मतलब में व्यस्त रहे ...?
क्यों न सुनाई दी हमे 2-2 साल
की बच्चियों की चीत्कारें ....?
कहाँ खो गए थे हम अब तक
कि  किसी दामिनी को लुटना पड़ा हमे झकझोर कर उठाने को 
कि किसी बहन को मरना पड़ा हमे जगाने को
क्यों न हम सुन लेते पहले ही अखबारों के कोने में छुपी चीखों को
क्यों न हम छोड़ देते अपने कुछ स्वार्थ उन लुटी आब्रुओं को संभालने को
है दर्द उनमे भी उतना ही, जितना कि हमने अब देखा है
है जख्म गहरा उतना ही, जितना कि हमने अब जाना है 
बहुत हो चुका ये आतंक व्यभिचारियो का ..
बस अब और नहीं, अब बिलकुल नहीं ..

हमे लड़ना है पग-पग पर उन सभी दामिनियो के लिए
हमे भिड़ना है हुक्मरानों से उन्हें इन्साफ दिलाने को
हमे ख़त्म करना है इंसानों में छुपे वहसी दरिंदो को

यह सुलग चुकी आग कहीं अब बुझने न पाए
यह बढ़ती हुई मशाल कही अब रुकने न पाए
हक लेंगे हम हमारी बहनों की सुरक्षा का
हक लेंगे हम दरिंदो को फांसी पर झुलाने का 

बदलेंगे हम खुद को, अपनी सोच को, अपने आचरण को
हर नारी को हमे सक्षम बनाना होगा 
जो कर सके इन असुरों का संहार
ताकि कर सके न कोई फिर ऐसा दुराचार ।